जानिए क्या है कावड़ यात्रा का महत्व और किस प्रकार शुरू हुयी यह यात्रा, यहां देखे पूरी डिटेल

Kanwar Yatra 2023: जानिए क्या है कावड़ यात्रा का महत्व और किस प्रकार शुरू हुयी यह यात्रा, यहां देखे पूरी डिटेल. हिन्दू धर्म के सबसे पावन और पवित्र महीने सावन की शुरुवात आज 4 जुलाई से हो चुकी है। इस महीने का बड़ा ही धार्मिक महत्व है सावन का महीना भगवान भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना है। इस महीने में भोलेनाथ की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। आप सभी तो जानते ही है की सावन महीने के आते ही बड़ी संख्या में लोग कांवड़ यात्रा करते है जो भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए लोग कावड़ में जल भरकर महादेव के अभिषेक के लिए पैदल यात्रा करते है हिंदू धर्म में इस यात्रा का खासा महत्व है. मान्यता के अनुसार कांवड़ यात्रा एक तरह से भगवान शिव का विशिष्ट अनुष्ठान है. कांवड़ लेकर जो शिव भक्त निकलते हैं, उन्हें कांवड़िया कहा जाता है. आइये जानते है इसके बारे में जानकारी।
शिव के अभिषेक के लिए कांवड़ियों के जत्थे दूर-दूर से गंगाजल भरकर प्रशिद्ध शिवालयों में पहुंचते
हर साल सावन महीने में होने वाली इस कावड़ यात्रा में लाखो की संख्या केसरिया वस्त्रों में कांवड़ियों के जत्थे दूर-दूर से गंगाजल भरकर प्रशिद्ध शिवालयों में अभिसेक के लिए जाते हैं. क्या आप जानते है की कावड़ यात्रा भी अलग-अलग प्रकार की होती है। आइए आपको बतातें हैं कांवड़ यात्रा कितने प्रकार की होती है और इसका इतिहास क्या है?
जाने कांवड़ यात्रा का के इतिहास के बारे में

हिन्दू धर्म के 18 पुराणों में से एक प्रसिद्ध शिव पुराण के अनुसार जब सावन के महीने में सृष्टि के उद्धार के लिए जब देवताओ और असुरो के बीच में समुद्र मंथन हुआ था. तब इस मंथन के दौरान चौदह प्रकार के माणिक निकलने के साथ ही हलाहल(विष) भी निकला. इस जहरीले विष से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने हलाहल विष पी लिया. भगवान शिव ने ये विष गले में जमा कर लिया, जिस वजह से उनके गले में तेज जलन होने लगी. जिसको कम करने ने लिए महादेव का गंगा जल से अभिषेक किया गया था।
जानिए क्या है कावड़ यात्रा का महत्व और किस प्रकार शुरू हुयी यह यात्रा, यहां देखे पूरी डिटेल
भगवान शिव के परम भक्त रावण ने किया था कावड़ से जलाभिषेक
हिन्दू धर्म की एक धार्मिक मान्यता है कि शिव भक्त रावण ने भगवान शिव के गले की जलन को कम करने के लिए उनका गंगाजल से अभिषेक किया था. रावण ने कांवड़ में जल भरकर बागपत स्थित पुरा महादेव में भगवान शिव का जलाभिषेक किया. इसके बाद से ही कांवड़ यात्रा का प्रचलन शुरू हुआ.तो दोस्तों यह था कांवड़ यात्रा का इतिहास अब आप यह बी जान लीजिये की यह कितने प्रकार की होती है।
आपको जानकारी के लिए बता दे की कावड़ यात्रा 5 प्रकार की होती है। आइये जानते है इनके बारे में विस्तार से
सामान्य कांवड यात्रा
आपको बता दे की सामान्य कांवड़ यात्रा में को सबसे सरल और आसान यात्रा माना जाता है। इसक यात्रा को करने के लिए अधिक नियमो का पालन नहीं करना पड़ता है। इस यात्रा के दौरान कांवड़िएं जहां चाहे वहां आराम कर सकते हैं. ऐसे कांवड़ियों के लिए सामाजिक संगठन से जुड़े लोग पंडाल लगाते हैं. इनमें भोजन और विश्राम करने के बाद दोबारा कांवड़िए अपनी यात्रा शुरू करते हैं. आराम करने के दौरान कांवड़ को स्टैंड पर रखा जाता है ताकि ये जमीन से न छुए.क्योकि इसका काफी महत्व माना जाता है।
24 घंटे में पूरी की जाती है डाक कांवड़ यात्रा
ऐसी मान्यता है की डाक कांवड़ यात्रा को सिर्फ 24 घंटे में पूरा लिया जाता है. इस यात्रा में कांवड़ लाने का संकल्प लेकर 10 या उससे अधिक युवाओं की टोली वाहनों में सवार गंगा घाट पर पहुँचती है. यहां ये लोग दल उठाते हैं. इस यात्रा में शामिल टोली में से एक या दो सदस्य लगातार नंगे पैर गंगा जल हाथ में लेकर दौड़ते हैं. एक के थक जाने के बाद दूसरा दौड़ लगाता है. इसलिए डाक कांवड़ को सबसे मुश्किल माना जाता है.यह भक्तो के लिए लिए बेहद कठिन यात्रा कही जाती है।
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झांकी कांवड़ यात्रा और उसका महत्त्व

आपने सुना होगा की बहुत से शिव भक्त झांकी लगाकर कांवड़ यात्रा करते हैं. ऐसे कांवड़िए 70 से 250 किलो तक की कांवड़ लेकर चलते हैं. इन झांकियों में शिवलिंग बनाने के साथ-साथ इसे लाइटों और फूलों से सजाया जाता है. इसमें बच्चों को शिव बनाकर झांकी तैयार की जाती है. यह यात्रा काफी मनोरम और आकर्षक होती है।
दंडवत कांवड़ यात्रा
दंडवत कांवड़ यात्रा में कांवड़िए अपनी मनोकामना पूरा करने के लिए तथा भगवन महादेव को प्रसन्न करने के लिए दंडवत कावड़ लेकर चलते हैं. ये यात्रा 3 से 5 किलोमीटर की होती है. इस दौरान शिव भक्त दंडवत ही शिवालय तक पहुंचते हैं और गंगा जल से शिवलिंग का अभिसेक कर मनोकामना की पूर्ति की कामना करते है।
खड़ी कांवड़ यात्रा

कावड़ यात्रा में सबसे अधिक कठिन माने जाने वाली यात्रा खड़ी कांवड़ यात्रा को कहा गया है। इस कांवड़ की खास बात ये होती है कि शिव भक्त गंगा जल उठाने से लेकर जलाभिषेक तक कांवड़ को अपने कंधे पर रखते हैं. इस दौरान ये एक पल के लिए भी कावड़ को अपने कंधे के निचे नहीं उतारते है। इस यात्रा में कांवड़ को आमतौर शिव भक्त जोड़े में ही लाते हैं. तब जाकर यह यात्रा पूर्ण होती है.और महादेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।