गेहूं खरीदने से पहले ग्रेडिंग मशीन से जांच करनी होगी गुणवत्ता, 20 रुपये प्रति क्विंटल तक देना होगा

mp e uparjan ऐसे में यह राज्य के किसानों की जेब के लिए बड़ा झटका होगा। उत्तर प्रदेश की तर्ज पर इस बार मध्यप्रदेश सरकार किसानों से निर्वाह मूल्य पर गेहूं खरीदने से पहले एक फिल्टर (मापने की मशीन) लगवाकर इसका परीक्षण करेगी। इसके लिए बकायदा किसानों से अधिकतम 20 रुपए प्रति क्विंटल तक चार्ज वसूला जाएगा।
यानी अगर कोई किसान अपना 300 क्विंटल गेहूं सब्सिडी मूल्य पर बेचने के लिए सरकारी गेहूं क्रय केंद्र पर जाता है तो उसे प्रत्येक को 6,000 रुपये का भुगतान करना होगा।
राज्य सरकार पहली बार सभी 3 हजार 500 खरीदी केंद्रों पर यह व्यवस्था अनिवार्य करने जा रही है। सूबे के 17 लाख किसानों से 128 लाख टन गेहूं खरीदा जाएगा। खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण निदेशक दीपक सक्सेना का कहना है कि नागरिक आपूर्ति निगम प्रमुख जिलों में ग्रेडिंग मशीन लगाने के लिए बोली लगा रहा है.
टेंडर के लिए सरकार ने अधिकतम 20 रुपये निर्धारित किए हैं,यानी इससे ऊपर टेंडर नहीं करना हैं। यदि 20रु. यदि निविदा रुपये से कम में पूरी की जाती है, तो उतनी ही राशि किसान के ग्रेडिंग समय से काट ली जाएगी।
गेहूं के साथ कचरा, मिट्टी तक की हो जाती है खरीदी
अधिकारियों के मुताबिक, पहले खरीदी केंद्रों में गेहूं की जांच का कार्यक्रम होता था, लेकिन यह अनिवार्य नहीं था। पहले, फ़िल्टर का उपयोग तब किया जाता था जब सोसायटी के अफसरों को लगता था कि गेहूं में कचरा, मिट्टी आदि हो सकता है। लेकिन, इसमें भी भष्ट्राचार होने की संभावना रहती थी।
पीडीएस की दुकानों पर खराब गेहूं आने पर विवाद की स्थिति बन जाती थी। इसलिए अब से खरीदी सेंटरों में ग्रेडिंग और सफाई का काम किया जाएगा। एजेंसी निर्धारण के लिए निविदाएं प्रस्तुत की जाती हैं। निर्धारित एजेंसी अधिकतम 20 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से गेहूं की व्यवस्था व सफाई करेगी। इस मामले में किसानों को रुपये का भुगतान करना होगा।
गेहूं खराब है तो कौन तय करेगा?
– ग्रेडिंग मशीन में एक बार में पूरा गेहूं डाला जाएगा। उसमें जो कचरा या अन्य कुछ होगा वो अलग हो जाएगा।
इसकी निगरानी कौन करेगा?
कलेक्टर नियुक्ति के लिए एक अधिकारी नियुक्त करेगा।
रसीद जारी की जाएगी? हां, इसे खरीदी में स्टोर किया जाएगा। उसी के आधार पर छंटनी की जाएगी।
जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार नहीं बढ़ेगा। इससे भ्रष्टाचार कम होगा। बढ़ने का सवाल ही नहीं है।
किसान विक्रेता के पास जाएगा। सरकार 2015 रुपये प्रति क्विंटल आवंटित करती है। इससे किसान को घर पर साफ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।