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बिहार : वैज्ञानिक पद्धति से हुआ काम हुआ आसान, केले की खेती से किसान हो रहे अमीर

केले की खेती से किसानों को 2 से 3 गुना लाभ मिलता है। वहीं अगर छठ के समय केले की कटाई की जाए तो लाभ 5 गुना तक बढ़ जाता है. कैमूर के किसान परंपरागत खेती को छोड़कर धीरे-धीरे वैज्ञानिक तरीके अपना रहे हैं। दरअसल नई तकनीक अन्नदाताओं के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है। अब किसान गेहूं और धान को छोड़कर केले की खेती को महत्व दे रहे हैं। कम लागत, उच्च उत्पादन जिले में कुल 5 हेक्टेयर भूमि पर किसान केले की खेती कर रहे हैं। भभुआ प्रखंड के महेसुआ के किसान नवल किशोर सिंह ने बताया कि उन्होंने तीन एकड़ जमीन में पहली बार केले की खेती की थी. जिसमें प्रति एकड़ लागत पैंसठ हजार रुपए आ गई। जैन कंपनी से टिश्यू कल्चर मंगवाया गया था। समय-समय पर उनका मार्गदर्शन मिलता रहा। लाभ व्यापार वैज्ञानिक विधि नवल किशोर ने बताया कि उन्हें बारिश से पहले ही कोविड हो गया था, जिसके चलते वे खेती का पूरा ध्यान नहीं रख सके. मानसून के मौसम में खेतों में पानी भर गया। जिससे कुछ फसल बर्बाद हो गई। फिर भी उन्हें उम्मीद है कि उनकी फसल को नुकसान नहीं होगा। फसल बेचने से ही उन्हें दोगुना लाभ होगा। उन्होंने कहा कि फसल तैयार है, जिसकी कटाई इसी माह कर ली जाएगी। साथ ही उन्होंने बताया कि उन्हें फसल ड्रिप सिंचाई प्रणाली के तहत सरकार की ओर से अनुदान भी मिला है. उनका क्षेत्रफल तीन एकड़ में है। जिस पर उगाई गई फसल भभुआ के बाजार में ही बिकेगी। किसानों को किया जाएगा प्रेरित वहीं कैमूर की बागवानी सहायक निदेशक तबस्सुम परवीन ने जानकारी देते हुए बताया कि जिले में कुल 5 हेक्टेयर में केले की खेती होती है. कुछ लोग निजी संस्थाओं के सहारे खेती भी कर रहे हैं। इस बार सरकार लोगों को भर्ती कर उन्हें प्रोत्साहित कर केले की खेती करने के लिए प्रेरित करेगी। मदद के लिए आगे आई सरकार वहीं उन्होंने बताया कि ड्रिप सिंचाई प्रणाली पर सरकार किसानों को अनुदान देती है. अधिकारी ने बताया कि केले की खेती करने से किसानों को 2 से 3 गुना लाभ मिलता है. वहीं अगर छठ के दौरान केले की कटाई की जाए तो मुनाफा 5 गुना तक बढ़ जाता है.

केले की खेती से किसानों को 2 से 3 गुना लाभ :

केले की खेती से किसानों को 2 से 3 गुना लाभ मिलता है। वहीं अगर छठ के समय केले की कटाई की जाए तो लाभ 5 गुना तक बढ़ जाता है.
कैमूर के किसान परंपरागत खेती को छोड़कर धीरे-धीरे वैज्ञानिक तरीके अपना रहे हैं। दरअसल नई तकनीक अन्नदाताओं के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है। अब किसान गेहूं और धान को छोड़कर केले की खेती को महत्व दे रहे हैं।

कम लागत, उच्च उत्पादन :
जिले में कुल 5 हेक्टेयर भूमि पर किसान केले की खेती कर रहे हैं। भभुआ प्रखंड के महेसुआ के किसान नवल किशोर सिंह ने बताया कि उन्होंने तीन एकड़ जमीन में पहली बार केले की खेती की थी. जिसमें प्रति एकड़ लागत पैंसठ हजार रुपए आ गई। जैन कंपनी से टिश्यू कल्चर मंगवाया गया था। समय-समय पर उनका मार्गदर्शन मिलता रहा।

लाभ व्यापार वैज्ञानिक विधि :
नवल किशोर ने बताया कि उन्हें बारिश से पहले ही कोविड हो गया था, जिसके चलते वे खेती का पूरा ध्यान नहीं रख सके. मानसून के मौसम में खेतों में पानी भर गया। जिससे कुछ फसल बर्बाद हो गई। फिर भी उन्हें उम्मीद है कि उनकी फसल को नुकसान नहीं होगा। फसल बेचने से ही उन्हें दोगुना लाभ होगा। उन्होंने कहा कि फसल तैयार है, जिसकी कटाई इसी माह कर ली जाएगी। साथ ही उन्होंने बताया कि उन्हें फसल ड्रिप सिंचाई प्रणाली के तहत सरकार की ओर से अनुदान भी मिला है. उनका क्षेत्रफल तीन एकड़ में है। जिस पर उगाई गई फसल भभुआ के बाजार में ही बिकेगी।

किसानों को किया जाएगा प्रेरित
वहीं कैमूर की बागवानी सहायक निदेशक तबस्सुम परवीन ने जानकारी देते हुए बताया कि जिले में कुल 5 हेक्टेयर में केले की खेती होती है. कुछ लोग निजी संस्थाओं के सहारे खेती भी कर रहे हैं। इस बार सरकार लोगों को भर्ती कर उन्हें प्रोत्साहित कर केले की खेती करने के लिए प्रेरित करेगी।

मदद के लिए आगे आई सरकार :
वहीं उन्होंने बताया कि ड्रिप सिंचाई प्रणाली पर सरकार किसानों को अनुदान देती है. अधिकारी ने बताया कि केले की खेती करने से किसानों को 2 से 3 गुना लाभ मिलता है. वहीं अगर छठ के दौरान केले की कटाई की जाए तो मुनाफा 5 गुना तक बढ़ जाता है.

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