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हर्बल खेती : मेंथा की फसल 3 महीने में कमाएगी 3 गुना पैसा, जानिए इसके फायदे

3 गुना पैसा

जड़ी-बूटी यानी औषधीय फसलों की खेती में लागत से 3 गुना ज्यादा आमदनी

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कोरोना महामारी के बाद दुनियाभर में हर्बल उत्पादों और आयुर्वेदिक दवाओं की मांग बढ़ गई है. यही कारण है कि किसान अब अनाज और सब्जियों की फसलों के साथ-साथ हर्बल फसलों की खेती पर जोर दे रहे हैं। जड़ी-बूटी यानी औषधीय फसलों की खेती में लागत से 3 गुना ज्यादा आमदनी होती है। इसके अलावा यह मिट्टी के बेहतर स्वास्थ्य को भी बनाए रखता है। मेंथा की खेती ऐसी ही उच्च कमाई वाली औषधीय फसलों में से एक है। हालांकि भारत के कई क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है, लेकिन इसकी अधिकतम उपज उत्तर प्रदेश के बंदायु, रामपुर, बरेली, पीलीभीत, बाराबंकी, फैजाबाद, अंबेडकर नजर और लखनऊ के खेतों से प्राप्त की जा रही है।

मेंथा क्या है
मेंथा को मिंट के नाम से भी जाना जाता है। इसका उपयोग दवाएं, तेल, सौंदर्य उत्पाद, टूथपेस्ट और कैंडी बनाने के लिए किया जाता है। जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि भारत मेंथा तेल का प्रमुख उत्पादक है। यहां से मेंथा तेल निकाला जाता है और दूसरे देशों को भी निर्यात किया जाता है। मेंथा की खेती के लिए अच्छी सिंचाई की आवश्यकता होती है। सही समय पर बोई जाने वाली मेंथा की फसल तीन महीने में तैयार हो जाती है।

मेंथा की खेती :
मेंथा की खेती फरवरी से लेकर मध्य अप्रैल तक रोपई और जून में इसकी फसल को काट लिया जाता है. हालांकि कई किसान फसल कटाई के बाद इसका प्रसंस्करण करके तेल भी निकाल लेते हैं. करीब 1 हेक्टेयर जमीन से 100 लीटर तेल की प्राप्ति हो जाती है और किसानों को इसके अच्छे दाम भी मिल जाते हैं. मेंथा की फसल को हल्की नमी की जरूरत होती है, जिसके चलते इसमें हर 8 दिन में सिंचाई की जाती है. जून में साफ मौसम देखते ही इसकी कटाई कर लेनी चाहिये.

लागत और कमाई :
उत्तर प्रदेश में मेंथा की खेती बड़े स्तर पर की जाती है. एक एकड़ में मेंथा की फसल लगाने में 20,000 से 25,000 तक का खर्च आ जाता है. बाजार में मेंथा का भाव 1000 से 1500 रुपये किलो के आस-पास रहता है. जिसके चलते कटाई के बाद मेंथा यानी मिंट की फसल से 1 लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है. 3 महिने में 3 गुना तक कमाकर देने वाली इस फसल को किसान हरा सोना भी कहते हैं.

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